Syllabus
कत्थक
पूर्णांक : 50
न्यूतम :18
क्रियात्मक : 25
शास्त्र : 25
क्रियात्मक
- तीनताल 4 सरल ततकार हस्तक सहित (ठाह, दुगुन और चौगुन की लयो में) 1 ठाट, 1 सलामी, 1 आमद, 5 साधारण तोड़ें तथा 2 तिहाईयां।
- दादरा और कहरवा तालों में 2 आधुनिक छोटे नृत्य।
- तीनताल, झपताल, दादरा, कहरवा तालों के ठे कों को हाथ से ताली- खाली देते हुए ठाह और दुगुन में पढने का अभ्यास।
- ततकार तथा तोडो को हाथ से ताली देकर ठाह तथा दुगुन में बोलना।
शास्त्र
- निम्नलिखित पारिभाषिक शब्दों का ज्ञान नृत्य, कथक नृत्य, ततकार, सलामी, आमद, तोडा, ताल, लय, लय के प्रकार (विलम्बित, मध्य और द्रुत), मात्रा, आवर्तन, ठे का, सम ताली (भरी), खाली (फाँक), ठाह, दुगुन तथा चौगुन, तिहाई तथा हस्तक।
- संगीत तथा भारत की दो मुख्य संगीत-पद्धतियों की व्याख्या।
- ततकार, तालों के ठे के तथा तोडो को भातखंडे अथवा विष्णु दिग्म्बर ताललिपि पद्धति में लिखने का ज्ञान।
- तीनताल, झपताल, दादरा तथा कहरवा तालों का पूर्ण परिचय।
कत्थक
पूर्णांक : 100
न्यूतम :35
क्रियात्मक : 50
शास्त्र : 50
क्रियात्मक
- तीनताल में चार अन्य कठिन ततकार हस्तक सहित, 2 ठाट, 1 सलामी, 5 कठिन तोड़े, 1 चक्करदार तोड़ा, 2 सरल गतभाव तथा 2 अच्छी
तिहाईयां। - झपताल में 2 ततकार, 1 ठाट, 1 सलामी, 5 सरल तोड़े तथा 2 तिहाईयां।
- दादरा और कहरवा तालों में लोक नृत्य।
- एकताल तथा सूलताल के ठे कों की ठाह, दुगुन व चौगुन हाथ पर ताली देकर बोलना।
- ततकार तथा तोड़ो को हाथ से ताली देकर ठाह, दुगुन और चौगुन लयों में बोलना।
शास्त्र
- निम्नलिखित पारिभाषिक शब्दों ज्ञान नृत्य, नाट्य नृत्य, ताण्डव, लास्य, अंग, प्रत्यंग, पढन्त, गतभाव, मुद्रा तथा चक्करदार तोड़ा।
- ध्वनि तथा नाद के विषय में साधारण ज्ञान।
- उत्तर भारतीय संगीत में प्रचलित भातखंडे तथा विष्णु दिग्म्बर ताललिपि पद्धति का साधारण ज्ञान।
- ततकार, तालों के ठे के तथा तोड़ो को भातखंडे तथा विष्णु दिगम्बर ताललिपि पद्धति में लिखने का ज्ञान।
- एकताल तथा सूलताल तालों का पूर्ण परिचय।
- कथक नृत्य का संक्षिप्त परिचय।
- महाराज बिन्दादीन तथा कालिका प्रसाद का संक्षिप्त जीवन परिचय।
कत्थक
पूर्णांक : 170
न्यूतम : 35
क्रियात्मक : 100
शास्त्र : 70
क्रियात्मक
- तीनताल में 2 कठिन ततकार हस्तकों सहित, पिछले पाठ्यक्रम में दिये गये ठाटों के अतिरिक्त 2 नये ठाट, 1 आमद, 1 सलामी, 5
कठिन तोड़े, 1 परन तथा 1 चक्करदार परन। ततकार को पैर से ठाह, दुगुन, तिगुन तथा चौगुन लयों में निकालना तथा हाथ से ताली देकर
बोलने का अभ्यास। - झपताल में 2 नये ततकार पलटो और हस्तकों सहित, 1 चक्करदार तोड़े, 2 कठिन तोड़े तथा 2 तिहाईयां।
- एकताल में 2 ठाट, 1 सलामी, 1 आमद, 4 ततकार हस्तक सहित, 4 तोड़े तथा 2 तिहाईयां।
- सूलताल में 2 ततकार तथा 2तोड़े।
- तीनताल में 2 घूघूँट का गतभाव।
- तेवरा, चारताल, सूलताल, तथा धमार तालों को ठाह, दुगुन तथा चौगुन लयों में हाथ से ताली देकर बोलना तथा पैर से इन ठे कों के
ततकार को इन्हीं तीन लयों में निकालना। - दो विशेष लोक नृत्य ।
शास्त्र
- निम्नलिखित पारिभाषिक शब्दों का ज्ञान
(अ) परन, चक्करदार परन, मुष्टि, पताका, त्रिपताका, मुकु टकरण, रेचक, अंगहार, उपांग तथा पलटा।
(ब) ध्वनि की उत्पत्ति, कं पन, आंदोलन, नाद की विशेताए, नाद स्थान, स्वर, चल और अचल स्वर, शुद्ध तथा विकृ त स्वर, सप्तक (मन्द्र, मध्य और तार)।
2. लखनऊ और जयपुर घरानों का संक्षिप्त इतिहास।
3. अच्छन महाराज तथा जयलाल का संक्षिप्त जीवन परिचय।
4. भातखंडे तथा विष्णु दिम्बर ताललिपि पद्धति का ज्ञान।
5. तेवरा, चारताल, आड़ा चारताल तथा धमार तालों का पूर्ण परिचय।
6. भारतीय संगीत में नृत्य का स्थान।
7. तबला तथा पखावज का पुर्ण परिचय।
कत्थक
पूर्णांक : 200
न्यूतम : 70
क्रियात्मक : 125
न्यूतम : 44
शास्त्र : 75
न्यूतम : 26
क्रियात्मक
1. तीनताल, एकताल तथा झपताल में नाच की पूरी तैयारी। इन तालों में कम से कम 15 मिनट बिना बोलों को दोहराये हुये नृत्य प्रदर्शन
करने की क्षमता। तीनताल में एक तालांगी, एक नृत्यांगी, एक कवितांगी तथा एक मिश्रांगी तोड़ों का अभ्यास। तीनताल में तोड़ो द्वारा
अतीत तथा अनागत दिखाना।
2. तीनताल में घूघूँट के प्रकार तथा बंसी व पनघट के गतभाव।
3. धमार ताल में 4 ततकार हस्तक सहित, 2ठाट, 1 सलामी, 1 आमद, 5 तोड़े, 2 तिहाईयां, 2 परने तथा 1 चक्करदार परन।
4. विभिन्न लयकारियों का ज्ञान। तीनताल में ततकार द्वारा पचगुन तथा आड़ लयों को पैर तथा हाथ से ताली देकर दिखाना।
5. तीवरा, चारताल तथा आड़ा चारताल में 2-2 ततकार तथा 2-2 तिहाईयां।
6. कोई 2 लोक नृत्य ।
7. पिछले वर्षों के सभी ताल तथा रूपक, दीपचन्दी, धुमाली, पंचम सवारी, आड़ा चारताल तालों को हाथ से ताली देकर ठाह, दुगुन, तिगुन
तथा चौगुन लयों में बोलना तथा पैर से निकालना।
8. यमन बिलावल तथा भैरवी रागों में एक- एक स्वरमलिका गाने का अभ्यास।
9. तबला वादन का प्रारंभिक अभ्यास।
शास्त्र
1. निम्नलिखित पारिभाषिक शब्दों का ज्ञान मुद्रा, निकास, स्थानक, अदा, घुमरिया, अंचित, कुं चित, रस, भाव, अनुभाव, भंगि- भेंद, तैयारी, अभिनय, पिण्डी, प्रिमलु, स्तुति, विक्षिप्त, हस्तक, कसक, मसक, कटाक्ष, नाज, अंदाज।
2. भातखंडे तथा विष्णु दिम्बर ताललिपि पद्धतियों का पूर्ण ज्ञान तथा दोनों की तुलना।
3. भारत के शास्त्रीय नृत्य-कथक, कथकली, मणिपुरी, भरतनाट्यम का परिचयात्मक अध्ययन और इनकी तुलना।
4. निम्न विषयों का पूर्ण ज्ञान- संयुक्त और असंयुक्त मुद्राएं, नृत्य में भाव का महत्व, प्रचलित गतभावों के कथानकों का अध्धयन, नृत्य सें लाभ, आधुनिक नृत्य की विशेताए।
5. पिछले तथा इस वर्ष के समस्त तालों के ठे के , ततकार तथा बोल आदि को विष्णु दिग्म्बर तथा भातखंडे ताललिपियों में विभिन्न लयों में लिखने की क्षमता। ताल के दस प्राणों का ज्ञान।
6. व्याख्या- वर्ण, आरोह अवरोह, अलंकार, थाट, राग, सुरावर्त, (स्वरमालिका), लयकारी, लय तथा लयकारी का भेंदा
7. यमन, बिलावल तथा भैरवी रागों का पूर्ण परिचय और इनमें सरल गीत गाने की क्षमता।
8. रूपक, दीपचन्दी, आड़ा चारताल, धुमाली तथा पंचम सवारी तालों का पूर्ण परिचय।
9. वर्तमान समय के किन्हीं दो प्रसिद्ध कथक नृत्यकारों का परिचय तथा उनकी नृत्य शैलियों का तुलनात्मक अध्ययन।
10. संगीत तथा नृत्य संबंधी विषयों पर लेख लिखने की क्षमता।
कत्थक
पूर्णांक : 200
न्यूतम : 70
क्रियात्मक : 125
न्यूतम : 44
शास्त्र : 75
न्यूतम : 26
क्रियात्मक
1. 10 करणों का क्रियाठ्मक रूप से प्रस्तुत करने की क्षमता।
2. तीनवात में 25 मिनट तक बिना बोलों को दोहराये धमार में 15 मिनट तक नृत्य करने की क्षमता। भजन तथा ठुमरी गायन पर भाव प्रदर्शित करते हुए नृत्य करने का अभ्यास।
3. नये कथानको – जैसे माखन- चौरी, कालिया- दमन, चीर हरण, गौवर्धन- धारण, तथा कथक शैली में तांडव और तास्प अंग के नृत्य का अभ्यास ।
4. कोई भी दो प्रादेशिक लोकनृत्य जैसे- गरबा, रास कोती, छपेला, भाँगड़ा, आदि का नृत्य करने की क्षमता।
5. अब तक के पाठ्यक्रम में निर्धारित तालों में लहरा (नगमा) बजाने का अभ्यास।
6. रूपक, धुमाती, चारतात, दीपचन्दी तथा पंचम सवारी में दो दो ठाट, एक-एक आगद, चार-चार तोड़े. एक-एक चक्करदार तोड़ा तथा चक्करदार परन, दो दो साधारण परने, तीन-तीन तिहाईयां तथा ततकार और उनके पतटे।
7. लक्ष्मीतात्, ब्रहातात, जत अद्धा वधा झुमरा वातों को हाथ से ताली देकर ठाह, दुगुन्, तिगुन्, चौगुन तथा आठ्तयों में बोलना तथा पैर से निकालना।
8. पाठ्यक्रम में अब तक निर्धारित सभी तात के ठे कों को तबले पर बजाने का अभ्यास। 9. समाज, काफी, तितंग तथा बिहाग रागों में स्वरमतिका गाने की क्षमता।
शास्त्र
1. निम्रलिखित शब्दों की परिभाषा तथा व्याख्या। उरप, पुरप, तिरप्, कसक, मसक, कटाक्ष, पूर्घट, उरमई, सुरमई, लाग-डाँट, जाति-परन, पक्षी-परन, बोत-परन, गत- निकास, गत- तोड़ा, गत-भाव, ग्रीमा- भेद, दम- बेदम तथा गति – भेद।
2. निम्नलिखित विषयों का अध्धयन- परम्परागत वेश-भूषा, सफल नृत्य प्रदर्शन की आवश्यकतायें, घुंघरुओं का चुनाव, नृत्यकार के गुणअवगुण, नौरसो की पूर्ण व्याख्या और नृत्य में उनका उपयोग; वेष सज्जा (Make up), दृष्टि भेद, नृत्य में दिशाओं का ज्ञान।
3. नृत्य के लखनऊ, जयपुर, और बनारस घरानों का तुल्नात्मक और विस्तृत अध्ययन।
4. नायक-नायिका भेद का ज्ञान।
5. महाराज ठाकु र प्रसाद, महाराज ईश्वरी प्रसाद, शंकर नंबूदरीपाद तथा रूकमणी अरून्डेल की जीवनियों का अध्धयन।
6. लक्ष्मीताल, ब्रह्मताल, जत, अद्धा तथा झूमरा तालों का पूर्ण परिचय एवं इन्हें विभिन्न लयकारियों में तातलिपि में तिखने की क्षमता।
7. काफी, खमाज, तिलंग तथा बिहाग रागों का पूर्ण परिचय।
8. ध्रुपद, धमार, ख्याल, टप्पा, ठुमरी तथा भजन गायन शैलियों का पूर्ण परिचय।
9. भारत की अल्प ज्ञात शास्त्रीय नृत्य शैलियां जैसे ओडिसी, कु चिपुड़ी का परिचयात्मक ज्ञान।
(क्रियात्मक परीक्षा 200 अंको की तथा शास्त्र के दो प्रश्न-पत्र 50-50 अंको के । पिछले वर्ष के सभी पाठ्यक्रम भी सम्मिलित है।)
कत्थक
पूर्णांक : 200
न्यूतम : 70
क्रियात्मक : 125
न्यूतम : 44
शास्त्र : 75
न्यूतम : 26
क्रियात्मक
1. अब तक के सभी तालों में नृत्य प्रदर्शन की विशेष क्षमता। अंगचारी मंडल तथा हस्त मुद्राओं में विशेष सौष्ठव।
2. अर्जुनताल, गणेशताल, सरस्वतीताल, रूद्रताल तथा सवारी ताल (दोनों प्रकार 15 तथा 16 मात्राओं की) में से किन्हीं तीनतालों में नृत्य
करने की क्षमता।
3. नेत्र, भू, कण्ठ, कटि, चरण तथा हस्त आदि अंगों के समुचित संचालन की क्षमता।
4. दिये गये कथानकों में कथक शेती में नृत्य करने की क्षमता। जयपुर तथा लखनऊ घराने के नृत्य का प्रदर्शन करके अन्तर बताना।
5. कु छ तबला तथा पखावज के बोल, तोड़ा, टुकड़ा, परन आदि बजाने का अभ्यास।
6. पीलू, झिंझोटी, गाय, बसन्त तथा बहार रागों में एक- एक स्वरमतिका अथवा छोटा ख्याल गाने का अभ्यास। होरी, चैती, कजरी, गजल,
तराना, भजन इन गायन शैलियों में से किन्हीं दो में गाकर भाव दिखाने का अभ्यास।
7. मारीच-वध, मदन- रहन, द्रौपदी चीरहरण, भिलनी भक्ति, पनघट की छेड़छाड़, लक्ष्मण शक्ति, त्रिपुरासुर वध, वामन अवतार, अहिल्या
उद्धार सती अनुसुइया, कलिया दमन, इन कथानकों में से किन्हीं 5 में गत भाव दिखाने का अभ्यास।
शास्त्र
प्रथम प्रश्न-पत्र
1. कथक नृत्य का विस्तृत इतिहास, विभिन्न कालों में इसकी रूपरेखा तथा इसका अंगीकरण, प्रत्येक काल के नृत्याचार्यों तथा उनकी नृत्य कला का पूर्ण परिचय।
2. रंगमंच की रचना का उद्देश्य तथा इतिहास, रंगमंच पर प्रकाश व्यवस्था तथा इसकी आवश्यकता।
3. नृत्य में वेशभूषा की आवश्यकता, वेशभूषा और रूप सज्जा में परस्पर संबंध और इस संबंध में आलोचनात्मक विचार।
4. लोकनृत्य की विशेताए एवं इसके विभिन्न रूप, कथक एवं लोकनृत्य में परस्पर साम्य एवं भेंद, लोकनृत्य की आवश्यकता एवं इसके आवश्यक अवयव।
5. भरतनाट्यम, मणिपुरी, ओडिसी, कु च्चिपुडी एवं कथकली नृत्य का परिचय तथा कथक नृत्य और इन सभी नृत्य में परस्पर साम्य और भेद।
6. कु तप अथवा वृन्दावन की व्याख्या तथा इसकी रचना के सिद्धांत, कथक नृत्य में कु तप की आवश्यकता तथा इसका महत्व।
7. नृत्य और अभिनय में परस्पर साम्य और भेद तथा इन दोनों की पृथक पृथक विशेषताएं तथा महत्व।
8. पाश्चात्य नृत्य का पूर्ण परिचय, इसमें प्रयोग किये जाने वाले विभिन्न करणों और रेंचको का अवलोकन, पाश्चात्य नृत्य और कथक नृत्य में परस्पर साम्य और भेद, बैले नृत्य की रचना के नियम, कथक शैली के बेले की श्रेष्ठता पर अपने विचार।
9. आधुनिक नृत्य का पूर्ण परिचय, इसकी वेशभूषा और कु तप, आधुनिक नृत्य का समाज में स्थान, आधुनिक नृत्य की विशेषताएं और और वर्तमान काल में इनकी आवश्यकताएं।
10. नृत्य संबंधित विषयों पर निबंध जैसे (अ) नृत्य और जीवन (ब) नृत्य और साहित्य (स) नृत्य और राष्ट्र (द) शिक्षा में नृत्य का स्थान, (च) नृत्य और व्यायाम तथा कथक नृत्य का भविष्य।
द्वितीय प्रश्न-पत्र
1. कथक नृत्य घरानों का विस्तृत अध्ययन, प्रत्येक घराने के दिवंगत और वर्तमान नृत्याचार्यों का परिचय, उनकी शैलियाँ और उनकी विशेताए।
2. निम्नलिखित शब्दों की सोदाहरण व्याख्या अग्रताल, आतीढ़, उठान, ऑचित, कुं चित, कुं चित-भ्रमरी, पाद- विन्यास, सम्पुट, मीलित, दृष्टि, प्रकम्पित ग्रीवा, परवाहित शिर, एकापाद, भ्रमरी नृत्य के सप्त पदार्थ, व्यूह क्रिया, अष्टगति, विलोम, अनुलोम, किया तथा हेला।
3. नायक और नायिका के भेदों का विस्तृत अध्ययन।
4. शिर, नेत्र, भृकु टि, होठ आदि शारिरिक अंगों के संचालन के सिद्धांत, इन संचालनों से उत्पन्न होने वाले भाव, कथक नृत्य में इनकी उपयोगितायें।
5. लिपि की परिभाषा- प्रथम वर्ष से लेकर षष्ठम वर्ष तक के पाठ्यक्रम में निर्धारित समस्त तातों के ठे के और बोलो को विभिन्न लपकारियों में लिपिबद्ध करके लिखना, नृत्य के लिए एक स्वतंत्र और उपयुक्त लिपि के निर्माण पर विचार और सुझाव।
6. कथक नृत्य के प्रत्येक घरानों के बोतों का विस्तृत ज्ञान, उनमें परस्पर साम्य और भेद, प्रत्येक घरानों के बोलों को पृथक पृथक लिपिबद्ध करके लिखना, प्रत्येक घरानों के बोलों की पृथक-पृथक विशेषताएं। विभिन्न प्रकार की लपकारियों का ज्ञान।
7. प्रथम वर्ष से लेकर षष्ठम वर्ष तक के पाठ्यक्रम में निर्धारित समस्त तालों में लहरा लिपिबद्ध करके लिखना।
8. कर्नाटक ताल पद्धति का पूर्ण परिचय, हिन्दुस्तानी तात पद्धति और कर्नाटक ताल पद्धति की परस्पर तुलना, उत्तरी तालों को कर्नाटकी तात लिपि में बद्ध करके लिखना।
9. गत और परन के विभिन्न प्रकारों का विस्तृत अध्ययन। इन सभी प्रकारों में परस्पर साम्य और भेद, इन सभी प्रकारों को कम से कम एकएक उदाहरण और उन सभी को लिपिबद्ध करके लिखना।
10. नृत्य संबंधी निबंध जैसे (अ) लोकनृत्य (ब) नृत्य का ताल और लय से संबंध, (स) नृत्य का आध्यात्मिक महत्व, (द) नृत्य द्वारा चरित्र का उत्थान (च) नृत्य में गणित का स्थान।
11. तबला, पखावज और नृत्य के बोत्, परन, तोड़ा आदि का भेद और ज्ञान। साधारण चक्करदार, कमाली चक्करदार, फरमाइशी चक्करदार, नृत्यांगी, तालांगी, कवितांगी, संगीतांगी, और मिश्रांगी तोड़ो का ज्ञान और भेद।
12. पीलू, झिंझोटी, गारा, बसन्त, बहार रागों का पूर्ण परिचय।
13. होरी, चैती, कजरी, गजल, तराना, ठुमरी, भजन आदि गायन शैलियों का पूर्ण परिचय तथा तुल्नात्मक अध्ययन।
(क्रियात्मक परीक्षा 200 अंको की तथा शास्त्र के दो प्रश्न-पत्र 50-50 अंको के । पिछले वर्ष के सभी पाठ्यक्रम भी सम्मिलित है।)
कत्थक
पूर्णांक : 200
न्यूतम : 70
क्रियात्मक : 125
न्यूतम : 44
शास्त्र : 75
न्यूतम : 26
क्रियात्मक
तीनताल में विशेष योग्यता:- गुरु वंदना, तीन ठाट ( तीन अलग Poses), दो आमद (1 सादा, 1 परन जुड़ी), तीन चक्कदार तोड़े जो 4 आवृत्ति से कम के ना हो, तीन परन (1 मिश्र जाति परन आवश्यक), तीन चक्कदार परन, दो कवित्त, तीन गिणती की तिहाई, ततकार में आधी, बराबर, दुगुन, तिगुन, चौगुन, अठगुन करना तथा बाँट या चलन का विस्तार करना।
झपताल:- दो ठाट, एक परन जुड़ी आमद, एक सलामी, तीन सादे तोड़े ( तीन आवृत्ति सें अधिक आवर्तनों के हो), दो चक्कदार तोड़े, दो परन, दो चक्कदार परन, एक कवित्त, तीन तिहाई, ततकार की बराबर, दुगुन, चौगुन, तिहाई सहित।
एकताल:- एक ठाट, एक आमद, दो तोड़ें, एक चक्कदार तोड़ा, एक परन, एक चक्कदार परन, एक तिहाई, ततकार की बराबर, दुगुन, चौगुन, तिहाई सहित।
तीनताल में:- गतनिकास की विशेषता, झूमर( झूमर-घूंघरू युक्त माथे की बिन्दी जैसा मांग का गहना), कलाई, मटकी उठाने के तीन प्रकार, गतभाव: माखनचोरी, अभिनय पक्ष में- एक भजन अथवा भक्ति रस के आधार पर गीत या पद पर अभिनय (भाव प्रस्तुति)।
शास्त्र
प्रारंभिक से प्रवेशिका तक के सभी शब्दों की जानकारी।
नर्तन के भेंद- नृत्य, नाट्य, नृत्त की परिभाषा।
लास्य तथा ताण्डव की के वल परिभाषा।
अभिनय दर्पणानुसार ग्रीवा भेंद (4 प्रकार)।
अभिनव दर्पणानुसार नौ प्रकार के शिरोभेद।
लोकनृत्य तथा आधुनिक नृत्य की परिभाषा।
जीवनियाँ- पं० कालिका प्रसाद, पं० बिन्दादीन महाराज, पं० हरिहर प्रसाद, पं० हनुमान प्रसाद।
जयपुर तथा लखनऊ घराने की विशेषता।
संयुक्त हस्तमुद्रांये(अभिनय दर्पणानुसार)। परिभाषा और प्रयोग- अंजली, 2.कपोत, 3. कं कट, 4. स्वास्तिक,5. डोला, 6.पुष्टपुट, 7. उत्संग, 8.
शिवलिंग,9. कटकावर्धन,10. कर्तरी स्वस्तिक, 11. शकट, 12. शंख।
तीनताल, झपताल, एकताल के पाठ्यक्रम की रचनाओं को लिपिबद्ध करना।
गतभाव के प्रसंगों का वर्णन लिखना।
संत कवि सूरदास तथा मीरा का परिचय।
कत्थक
पूर्णांक : 200
न्यूतम : 70
क्रियात्मक : 125
न्यूतम : 44
शास्त्र : 75
न्यूतम : 26
क्रियात्मक
श्रीशिव वंदना अथवा कृ ष्ण वंदना:तीनताल में विशेषताओं सहित- एक उठान, एक ठाट, एक आमद, एक परमेलू, एक नटवरी तोड़ा, एक फरमाइशी चक्रदार( पहली धा पहली, दूसरी धा दूसरी,तथा तीसरी धा तीसरी सम पर), एक गणेश परन, एक ततकार की लड़ी। (तकिट तकिट धिन) रूपक में – एक ठाठ, एक सादा आमद, चार सादे तोड़े, दो चक्रदार तोड़े, दो परन, दो चक्रदार परन, दो तिहाई एक कवित्त। ततकार- बराबर, दुगुन, चौगुन, तिहाई सहित। एकताल में- दो ठाट, एक परन जुड़ी आमद, चार तोड़े, दो चक्कदार तोड़े, दो परन, दो चक्रदार परन, एक कवित्त और तीन तिहाई। ततकारबराबर, दुगुन, तिगुन, चौगुन, तिहाई सहित। सीखें हुये सभी बोलों की ताल देकर पढन्त करना। गतनिकास में विशेषता: रूखसार, छेड़छाड़, आंचल आदि। गतभाव में कालिया दमन। ‘होरी’ पद पर भाव प्रस्तुति।
शास्त्र
कथक नृत्य का मंदिर परम्परा और दरबार परम्परा का संपूर्ण ज्ञान।
(अ) बनारस घराने की विशेताए।
(ब) जयपुर, लखनऊ घराने की संपूर्ण परम्परा का ज्ञान (वंश परम्परा सहित)
भौ संचालन तथा दृष्टि भेंद के प्रकार और उनका प्रयोग (अभिनव दर्पणानुसार)।
लास्य तथा ताण्डव की व्याख्या और उनके प्रकार।
तीनताल के ठे कों को आधी ½, पौनी ¾ , कु आड़ी 1, ¼ आड़ी, ½ डेढी, बिआड़ी 1, ¾ (पौने दो) लय में लिपिबद्ध करना।
(क) अभिनय की स्पष्ट परिभाषा।
(ख) आंगिक- अभिनय, वाचिक- अभिनय, आहार्य- अभिनय, सात्विक- अभिनय की व्याख्या तथा प्रयोग।
संयुक्त हस्त की निम्नलिखित मुद्राओं की परिभाषा तथा प्रयोग: चक्र, सम्पुट, पास, कीलक , मत्स्य, कू र्म, वराह, गरुड़, नागबन्ध, खटवा,
भेरूण्ड।
जीवनियां- पं० अच्छन महाराज, पं० शम्भु महाराज, पं० लच्छू महाराज, पं० नारायण प्रसाद, पं० जयलाल।
तीनताल, रूपक, तथा एकताल के सभी बोलो की लिपिबद्ध क्रिया।
कथक नृत्य के अध्ययन की, शारिरिक, मानसिक और बोद्धिक उपयोगिता।
कत्थक
परीक्षा के अंक पूर्णाक:400, शास्त्र:150 क्रियात्मक:250( क्रिया:200+ मंच प्रदर्शन50)
शास्त्र प्रथम प्रश्न-पत्र नाट्य की उत्पत्ति(भरतानुसार), नाट्य का प्रयोग तथा नाट्य का प्रयोजन। नवरसों की परिभाषा। नायक के चार भेंद-धीरोद्धत, धीरललित, धीरोदात्त, धीरप्रशांत। चार प्रकार की नायिका और उनकी परिभाषा, अभिसारिका, खण्डिता, विप्रलब्धा तथा प्रोषितपतिका। दशावतार में से मत्स्य, वराह, कू र्म तथा नरसिंह अवतार की कथा तथा उनकी मुद्राएं। ताल के दस प्राणों की व्याख्या। भरतनाट्यम, मणिपुरी तथा कथकली नृत्य की जानकारी। इनकी वेशभूषा तथा वाद्यो का ज्ञान। तीनताल, झपताल, धमार में आमद, बेदम तिहाई, फरमाइशी परन तथा चक्कदार परन, तिपल्ली तथा कवित्त को लिपिबद्ध करना। (अ) गुरु शिष्य परम्परा का महत्व। (ब) शिष्य के गुण तथा गुरु के प्रति उसके कर्तव्य।
द्वितीय प्रश्न–पत्र रस की निष्पत्ति, स्थाई भाव, भाव,विभाव, अनुभाव, व्यभिचारी भाव आदि की परिभाषा। निम्नलिखित पारिभाषिक शब्दों का ज्ञान- तिपल्ली, कवित्त, फरमाइशी परने, कमाली परन, बेदम तिहाई, त्रिभंग, सुढंग, लाग- डाँट, अनुलोम, प्रतिलोम, भ्रमरी, न्यास- विन्यास। कथक नृत्य में प्रयुक्त होने वाले निम्नलिखित गीत प्रकारों की व्याख्या: अष्टपदी, ध्रुपद, ठुमरी, चतुरंग, त्रिवट, तराना, चैती, कजरी, होरी। कथक नृत्य में नवाब वाजिद अली शाह तथा रायगढ़ के महाराज चक्रधर सिंह का योगदान। रासताल 13, धमार14, गजझम्पा15, पंचम सवारी 15 में आमद, तिहाई, तोड़ा, चक्कदार परन तथा कवित्त आदि को लिपिबद्ध करना। जीवनियाँ:- नटराज गोपीकृ ष्ण, कथक साम्राज्ञी सितारा देवी, पंडित दुर्गालाल व गुरु कु न्दनलाल गंगानी। निबन्ध ज्ञान: (1) राम तथा कथक, (2) ठुमरी का कथक नृत्य सें सम्बन्ध। नर्तक/नर्तकी के गुण और दोष।
क्रियात्मक सरस्वती वंदना। तीनताल के अतिरिक्त झपताल में विशेष तैयारी। गजझम्पा या छोटी सवारी (पंचम सवारी) तथा रास और धमार में ठे के की ठाह,दुगुन, ठाठ, आमद, दो तोड़े, एक परन तथा एक कवित्त का प्रदर्शन। गतनिकास; आंचल, नाव , घूघँट के प्रकार। गतभाव: पिछले वर्षों के सभी गतभावों का प्रदर्शन तथा द्रौपदी चीरहरण।
ठुमरी भाव( शब्द, राग, ताल की जानकारी आवश्यक)।
एक तराना या त्रिवट किसी ताल में।
हाथ से ताली लगाकर सभी बोलों की पढन्त।
अभिसारिका, खण्डिता, विप्रलब्धा तथा प्रोषितपतिका नायिका पर गतभाव या इनसे संबंधित पद या ठुमरी पर भाव नृत्य।
तीनताल या झपताल की ततकार में लड़ी या चलन।
अभिनय दर्पण का श्लोक “आंगिक भुवन यस्य”।
पिछले संत कवियों को छोड़कर अन्य किन्हीं दो संत कवियों के कविता या भजन पर भाव दिखाना तथा दोनों संत कवियों का परिचय देना।
मंच प्रदर्शनस्वतंत्र रूप से विधिवत मंच प्रदर्शन अनिवार्य ( 20 से 30 मिनट तक)।
गायन
परीक्षा के अंक
पूर्णांक : 50
न्यूतम :18
क्रियात्मक : 40
शास्त्र (मौखिक ) : 10
शास्त्र
- पाठ्यक्रम के रागों का वर्णन (थाट ,स्वर ,समय , वादी , संवादी,आरोह – आवरोह )
क्रियात्मक
- ताल : कहरवा , दादरा , तथा त्रिताल का ज्ञान । हाथ से ताली देकर बोलने का अभ्यास । सोलह मात्राओं के समान आठ मात्राओं का त्रिताल (मध्यालय ) भी प्रमाणित है ।
- स्वरज्ञान : शुद्ध स्वर , अलग – अलग तथा सरल समुदाय में गाना – बजाना तथा पहचानना । निम्नलिखित स्वर अलंकारों से प्रारम्भिक परिच्य ।
अलंकार : –
- सा रे ग म प ध नि सां
- सा रे ग , रे ग म , ग म प , ………..
- सा रे ग म , रे ग म प , ग म प ध …….
- सा रे सा रे ग , रे ग रे ग म ………….
- सा ग , रे म , ग प , म ध , प नि , ध सां ……
- सा , सा रे सा , सा रे ग रे सा , सा रे ग म ग रे सा …….
आ ) रागज्ञान :- निम्नलिखित रागों में एक – एक बंदिश या गत स्वर ताल बद्ध गाना / बजाना ।
दुर्गा , काफी , खमज , भीमप्लासी , बागेश्री , भूपली,देश
एन सभी रागों के आरोह अवरोह और पकड़ गाना – बजाना तथा सरल स्वर समुदाय से राग पहचानना ।
गायन
परीक्षा के अंक
पूर्णांक : 75
नियुनतम 26
क्रियात्मक : 60
शास्त्र (मौखिक ) : 15
शास्त्र :
- निम्नलिखित शब्दों की संक्षिप्त परिभाषाएँ :-
संगीत , ध्वनि, नाद , स्वर , शुद्ध स्वर , विकृत स्वर (कोमल स्वर , तीव्र स्वर ), वर्जित स्वर , सप्तक , मेल , अलंकार (पलटा ) , राग , जाती (औडव , षाडव, सम्पूर्ण ) , वादी , संवादी , पकड़ , आलाप , तान , स्वरमलिका , ( सरगम गीत ) लक्षण गीत , स्थायी , अंतरा , लय (विलंभित , मध्य , द्रुत ) , मात्रा , ताल , विभाग , सं , ताली , खाली , दुगुन , ठेका , वर्जित स्वर , आवर्तन इन सभी पारिभाषिक शब्दों का वर्णन पाठयक्रम के राग तथा तालों के उधारण ध्वरा स्पष्ट किया जाए ।
- पाठ्यक्रम के रागों का शास्त्रीय ज्ञान : रागों के मेल (थाट) , स्वर , आरोह , आवरोह , पकड़ , मुख्य – स्वर समुदाय , समय, जाति , वादी , संवादी , वर्जित स्वर , आदि का विवरण ।
- स्वरलिपि के चिन्हों का प्रारम्भिक ज्ञान ।
क्रियात्मक :
- स्वरज्ञान : – सात शुद्ध स्वरों को गाना / बजाना , पहचानना । कोमल , तीव्र , स्वरों को गाना / बजाना तथा राग के स्वरों की सहायता से उनको पहचानना । निम्नलिखित शुद्ध स्वरों के पाँच सरल अलंकार विलंभित तथा मध्य लय में गाना / बजाना तथा हर अलंकार का प्रयोग पाठ्येक्रम के किसी एक राग में करना ।
- सारे , रेग , गम ……….सां नि , नि ध , ध प
- सा रे सा , रे ग रे , ग म ग , …. सां नि सां , नि ध नि , ध प ध (दादरा ताल में )
- सा रे ग सा रे ग म , रे ग म रे ग म प …………(रूपक ताल में) ।
- सा ग रे सा , रे म ग रे , ग प म ग …….(तीन ताल में ) ।
- सा म , रे प , ग ध …………
- राग ज्ञान : –
यमन ,काफी , खमज , भीमप्लासी ,बागेश्री , भूपली , देश , दुर्गा ।
- एन सभी रागों के आरोह – अवरोह , पकड़ तथा प्रारभिक आलाप/ स्वर विस्तार ।
- हर राग में मध्य लय का एक गीत अठुवा गत ।
- एनमें से किनही 6 रागों में बंदिश / गत , आलाप / स्वरविस्तार , तान सहित अठुवा, गत तौड़ोसहित 5 मिनट तक गाने अथवा बजने की तैयारी ।
- झपताल अथवा रूपक अठुवा एकताल में एक गीत , दो सरगम गीत तथा दो लक्षण गीत , एक द्रुपद (दुगुनसहित ) एक भजन इस प्रकार सात अतिरिक्त गीत पाठ्यक्रम के रागों में किए जाएँ । वादन के विधार्थियों के लिए त्रिताल के अतिरिक्त अन्य तालों में दो रचनाएँ , तथा एक धुन वाध्यानुकूल अलंकार विशिष्ट बोलों सहित किए जाएँ ।
- मुख्य रागदार्श्क स्वरों ध्वरा राग पहचानना ।
- “वन्देमातरम” और “जन गण मन ” यह राष्ट्र गीत गाना – बजाना आवश्यक है ।
- ताल ज्ञान : – एकताल , चारताल ,झपताल की जानकारी तथा हाथ से ताल देकर बोलने का अभ्यास ।
अंक तालिका
सूचना : – इस परीक्षा के लिय हर एक विध्यार्थी को 15 मिनट का समय होगा । हर एक विध्यार्थी की परीक्षा अलग – अलग लेना आवश्यक है ।
हारमोनियम का उपयोग केवल आधार स्वर ( षडज – पंचम / माध्यम ) के लिए होगा । संगत करने की अनुमति केवल प्रथम राग गाते समय होगी ।
पूछे गए राग में आलाप तान के साथ बंदिश : 8 अंक तथा अन्य एक राग में तीन आलाप या 5 तान के साथ बंदिश : 7 अंक । कुल : 15 अंक ।
एक अलंकार शुद्ध स्वरों में तथा एक किसी राग में : – 6 अंक ।
द्रुपद या वध्यानुकुल अलंकार थाह तथा दुगुन में : 5 अंक ।
तीन ताल को चोरकर अन्य में बंदिश : 5 अंक ।
लक्षण गीत , भजन , सरगम गीत , धुन , वंदे मातरम तथा जन गण मन एन में से कोई तीन प्रकार : 12 अंक ।
राग पहचानना ( तीन राग ) : 6 अंक ।
स्वर पहचानना सा रे ग , ध नि , ग म प , म प नि इस प्रकार दो स्वर समूह 6 अंक ।
दो तालों की जानकारी तथा हाथ से ताल देकर ठेका बोल्न : 5 अंक ।
शस्त्रा (मौखिक) : –
एक राग की जानकारी : 5 अंक ।
किसी एक गीत / गत प्रकार या स्वर लिपि पध्दति की जानकारी : 4 अंक तथा अन्य तीन चोटी परिभाषाएँ : 6 अंक ।
कुल : – 15 अंक ।
सर्व योग : 75 अंक ।
गायन – वादन
परीक्षा के अंक
पूर्णांक : 125
न्यूतम 44
क्रियात्मक : 75
शास्त्र (मौखिक ) : 50
क्रियात्मक :
- स्वरज्ञान : –
- शुद्ध स्वरोंके साथ गाये / बजाये हुए कोमल तथा तीव्र स्वरों को पहचानने की क्षमता ।
- पहले शिखे सभी अलंकारों का मध्य लय में अभ्यास ।
- निम्नलिखित 6 नये अलंकारोन्न का विभिन्न रगों में तथा विभिन लय में लयकारी (एक मात्रा में एक / दो / तीन / चार / स्वर ) में हाथ से लय देकर प्रयोग करने का अभ्यास ।
3.1) सा ग रे सा , रे म ग रे , ………..सां ध नि सां ।
3.2) सा रे सा ग , रे ग रे म …………सां नि सां ध ।
3.3) सा रे ग रे ग सा रे , रे ग म ग म रे ग ……….(रूपक ताल में )
3.4) सा रे ग रे सा , रे ग म ग रे …………………..(झप ताल में)
3.5) सा म ग रे , रे प म ग …….सां प ध नि ….
3.6) सा रे ग रे ग – , रे ग म ग म – …………………(एक ताल में )
राग ज्ञान :-
(1) पिछले वर्ष के सभी रागों की पुनराव्रत्ति के साथ इस वर्ष यमन (अथवा कल्याण ) और भूपली इन रगों के बड़े खयाल / मसीटखनी गत्ते (केवल बंदिश / गत ) गाना / बजाना अपेक्षित है । रागविस्तार अपेक्षित नहीं है ।
(2) अध्ययन के लिए राग – भेराव , अलहिया बिलावल ,केदार , बागेश्री , बिहाग , मल्कौंस , खमाज।
(3) इन रागों में आरोह – अवरोह , प्रारम्भिक आलाप और एक मध्यालय का खयाल / राजलहानी गत पाँच आलाप तथा पाँच तानो सहित (7 मीन तक ) गाने / बजने की तैयारी का अभ्यास ।
(5) गायन के लिए मण्डल की प्रथना “जय जगदीश हरे ” और एक भजन या लोकगीत शिखाया जाए । वादन के लिए लोकधुन और विशिस्त वादन क्क्रियाओं की तैयारी का अभ्यास ।
(6) गए / बजाए हुए आलापों द्वारा राग पहचानने की क्षमता अपेक्षित है ।
ताल ज्ञान :–
- झपताल ,रूपकताल ,धमार एन तालों की जानकारी ।
- तबले एर बजते हुए तालों को (बोलोंसे ) पहचानने का अभ्यास – कहरवा, दादरा , तीन ताल , एकताल ,झपताल ,रूपक , चौताल ,धमार,।
- तीनताल , एकताल , चौताल , धमार , रूपक और झपताल हाथ से ताल देकर (ताली – खाली दिखाकर ) दुगुन में बोल्न ।
शस्त्रा
- पिछले वर्ष के सभी पारिभाषिक शब्दों की जानकारी की पुनराव्रत्ति अनिवार्य ।
- निम्नलिखित विषयों की वणनात्मक साधारण जानकारी । भारतिए संगीत की दो मुख्य प्ध्द्तियों के नाम – 1) उत्तर संगीत 2) दंक्षिण भारतीय ( करनाटक ) । नाद की व्याख्या और उसकी विशेषता के तीन नाम – 1) छोटा बड़ापन , 2) ऊँचान – नीचपन , 3) जाती अठुवा गुण । गांक्रिया / वण के नाम – 1) स्थायी , आरोही – अवरोही , 3) संचारी , 4) आभोग । गीत के प्रकार – द्रुपद , धमार , ख्याल , भजन , लक्षण गीत , सरगम गीत । वध्य के लिए – मशीतखनी तथा राजखनी गत तथा सरगमगीत । ध्वनि- नाद – श्रुति , स्वर की जानकारी ।
- पं विष्णु डिगाम्म्बर पुलूसकर तथा पं विष्णु नारायण भातखण्डे स्वरलिपि के छिननोह की संक्षिप्त जानकारी – मंडरा / मध्य / टार स्वर ।सम / खाली / ताली / विभाग , आधी मात्रा(1/2)/ पाँव (1/4) मात्रा ।
- प्रथम व द्वितीय वर्षों के रागों का पूर्ण विवरण – राग में लाग्ने वाले शुद्ध / कोमल / तीव्र स्वर , आरोह- आवरोह , वादी – संवादी , पकड़ , समय ) ।
- अब तक शिखे हुए सभी तालों की मात्र , ठेका , सम , विभाग , ताली , खाली की मौखिक जानकारी और तालों को ठाह (बराबर ) तथा दुगुन लय में बोलने का अभ्यास ।
- पं विष्णु दिगंबर प्लसकर की जीविनी ( 10 वाक्यों में ) ….
- वध्य के अंगों की जानकारी – गायन के परीक्षार्थी तानपूरा की तथा वादन के परीक्षार्थी वध्य की जानकारी देंगे ।
तबला- पखावज
परीक्षा के अंक
पूर्णाक-50
न्यूनतम-18
क्रियात्मक 40
शास्त्र 10
शास्त्र
- निम्नलिखित शब्दों की परिभाषा – मात्रा, ताल, सम, ताली, खाली, विभाग, दुगुन, आवर्तन।
क्रियात्मक:
- अपने वाद्य पर बजने वाले सभी प्रमुख स्वतंत्र वर्णों के वादन विधि का समुचित ज्ञान।
- अ.निम्न सभी तालों को ठाह और दुगुन में हाथ से ताली, खाली दिखाकर बोलने तथा बजाने की क्षमता । तबला: त्रिताल, झपताल, दादरा और कहरवा। पखावज: आदिताल, चौताल तथा सूलताल।
ब: रूपक/ तीवरा ताल को बराबर की लय में बोलने तथा बजाने की क्षमता।
- तबला में निम्नलिखित तालों का विस्तार – अ: त्रिताल में एक तिट एवं तिरकिट का कायदा व पलटे। ब: त्रिताल और झपताल में सम से सम तक कम से कम एक- एक तिहाई। पखावज में चौताल में धागेतिट तथा धूमकिट बोलयुक्त रचना प्रकारों का बराबर की लय में वादन।
अंक तालिका
1.परिभाषा:10 अंक,
- वर्ण तथा तालों के ठेके एकगुन व दुगुन में बजाना:10 अंक,
- तालों के ठेके हाथ पर ताल देकर पढना: 10 अंक,
- त्रिताल, झपताल में अभ्यासक्रम के अनुसार वादन: 12 अंक,
- रूपक में अभ्यासक्रम के अनुसार वादन: 3अंक,
- सामान्य प्रभाव: 5अंक,
- कुल 50 अंक व निर्धारित समय 10 मिनट।
तबला- पखावज
परीक्षा के अंक
पूर्णाक-75
न्यूनतम-26
क्रियात्मक-60
मौखिक-15
शास्त्र
- निम्नलिखित शब्दों की परिभाषा – संगीत, नाद, स्वर, लय , बोल, ठेका, किस्म, कायदा, मुखडा,तिहाई, तिगुन, चौगुन, टुकड़ा।
- रूपक/तीव्रा तथा एकताल/ आदिताल को बराबर तथा दुगुन में हाथ से ताली- खाली दिखाकर बोलने की क्षमता।
- तबला/पखावज तथा उसके विभिन्न अंगों का वर्णन।
क्रियात्मक–
- रूपक/ तीव्रा तथा एकताल/ आदिताल को बराबर तथा दुगुन में बजाने की क्षमता।
- निम्नलिखित तालों में विस्तार त्रिताल: दो किस्म, ‘धाती’ का एक कायदा, तथा तीन पलटें, तिहाई सहित, दो मुखडे, दो टुकड़े।झपताल: तिट का एक कायदा तीन पलटे, तिहाई, एक किस्म, एक टुकड़ा और सम से सम तक दो तिहाई। पखावज: चौताल तथा सूलताल में 2 परने, 1 रेला (4,4 पलटो के साथ) तथा सम से सम तक दो, दो तिहाईयां।
अंक तालिका:-
- पाठ्यक्रम के ठेकों को दुगुन में बजाना: 10 अंक,
- परिभाषा, तालों के ठेके हाथ पर ताल देकर पढना:10 अंक,
- दाये-बाये का वर्णन :5अंक,
- त्रिताल में वादन: 25 अंक,
- झपताल में वादन: 20 अंक,
- सामान्य प्रभाव: 5अंक
कुल=75 अंक
सूचना-
- हर एक विद्यार्थी को 15 मिनट का समय निर्धारित किया गया है।
- विद्यार्थियों को सभी वादन लहरा के साथ करना होगा।
पखावज के लिये पाठ्यक्रमानुसार पखावज
तबला- पखावज
परीक्षा के अंक
पूर्णाक-125
शास्त्र-50
क्रियात्मक-75
शास्त्र–
- विलम्बित, मध्य और द्रुत लय का ज्ञान।
- तबला/ पखावज के विभिन्न वर्ण और उन्हें अपने वाद्य पर निकालने की विधि।
- (अ) केवल दायें हाथ से बजने वाले वर्ण।
- (ब) केवल बायें हाथ से बजने वाले वर्ण।
- (स) दोनो हाथ से एकसाथ बजने वाले वर्ण।
- निम्नलिखित बोलो की निकास विधि – तिरकिट, तकडां, कड़धा, किटतक, धिड़नग, धिरधिर, त्रक, क्ड़धान, गदीगन।
- पं० भातखंडे तथा पं० पलुस्कर ताललिपि पद्धतियों की संपूर्ण जानकारी।
- निम्नलिखित तालों को दोनों ताललिपि पद्धतियों में लिपिबद्ध करने का अभ्यास। तबला: त्रिताल, दादरा, कहरवा, झपताल, रूपक। पखावज: चौताल, सूलताल, तीव्रा, धमार तथा आदिताल।
- त्रिताल/ चौताल तथा झपताल/ सूलताल के टुकड़ों को पं० भातखंडे ताललिपि पद्धति में लिपिबद्ध करने का अभ्यास।
- निम्नलिखित शब्दों की परिभाषा :- कायदा, रेला, पलटा, तिहाई, मुखडा, लग्गी, उठान, चक्रदार, मोहरा।
क्रियात्मक:-
- निम्नलिखित तालों के ठेकों को हाथ से ताल देकर दुगुन लय में बोलने तथा बजाने का अभ्यास: तबला: धुमाली,दीपचन्दी,चौताल, तेवरा। पखावज: धमार, तीव्रा, त्रिताल।
- इस वर्ष के शास्त्र पक्ष में उल्लेखित सभी बोलो को भलिभांति निकालने की क्षमता।
- निम्नलिखित तालों में विस्तार –
तबले के विद्यार्थी हेतु–
- त्रिताल- त्रक तथा धातीधागे का एक-एक कायदा, चार पलटे, तिहाई, एक रेला, चार किस्म एक चक्रदार, दो टुकड़े।
- झपताल-एक कायदा, दो तिहाई।
- एकताल- दो तिहाई, दो टुकड़े।
- दादरा तथा कहरवा में दो सरल लग्गियाँ।
- रूपक- दो किस्म, दो तिहाई, दो टुकड़े।
पखावज के विद्यार्थियों हेतु –
- चौताल- दो रेले, एक पडार, दो साधारण परने, दो चक्रदार परने तथा दो टुकड़े।
- सूलताल- एक रेला, दो परने।
- धमार- दो परने, दो तिहाईयां, दो टुकड़े।
- तीव्रा- ठेके के दो प्रकार, दो परने,दो तिहाईयां।
- तबला– छोटा ख्याल अथवा रज़ाखानी गत के साथ त्रिताल में संगत करने की क्षमता।
पखावज– ध्रुपद के साथ संगत करने की क्षमता।
- क्रियात्मक में लिखित सभी रचना प्रकारों हाथ से ताल देकर पढन्त।
अंक तालिका–
- तालों के ठेके तथा उनको दुगुन में बजाना :10 अंक,
- निकास: 10 अंक,
- त्रिताल में वादन:05 अंक,
- झपताल, एकताल, रूपक में वादन: 15 अंक,
- दादरा तथा कहरवा में लग्गियाँ:05 अंक,
- साथ संगत (क्रियात्मक पाठ्यक्रम के अनुसार):05 अंक,
- हाथ से ताल देते हुए पढन्त:10 अंक,
- सामान्य प्रभाव:05 अंक।
कुल मौखिक=75 अंक।
सूचना:-
- हर एक विद्यार्थी को 20 मिनट का समय निर्धारित किया गया है।
- विद्यार्थी को सभी वादन लहरा के साथ करना होगा।
- पखावज के लिये पाठ्यक्रमानुसार पखावज के ताल पूछे जायेंगे।
कथक नृत्य
प्रारंभिक परीक्षा के अंक
पूर्णाक:50, न्यूनतम:18, क्रियात्मक:40, शास्त्र:10शास्त्र
- तीनताल का परिचय।
- कथक नृत्य का परिचय (पाँच वाक्यों में)।
- खुद का, संस्था का, गुरु का परिचय(पाँच वाक्यों में)।
- परिभाषाएं -लय: विलम्बित लय, मध्य लय, द्रुत लय, मात्रा, सम ताली, खाली, विभाग और तिहाई।
क्रियात्मक
- तीनताल का परिचय।
- तीनताल में ततकार बराबर,दुगुन, चौगुन, तिहाई सहित।
- तीनताल में6 सादें तोड़े, 2 चक्करदार तोड़े व 2 तिहाई।
- तीनताल के ठेकों की ताल लगाना।
- तीनताल की गिणती की ठाह, दुगुन, चौगुन, हाथ से ताल लगाना।
- सभी रचनाओं की पढन्त आवश्यक हैं।
(नोट: प्रारंभ से ही तबला और लहरा के साथ नृत्य करना होगा।)
कथक
परीक्षा के अंक
पूर्णाक:75
न्यूनतम:26
क्रियात्मक:60
शास्त्र:15(मौखिक)
शास्त्र
- लय( बराबर, दुगुन, चौगुन), सम, मात्रा, ताली, खाली, गत निकास, ततकार, तोड़ा, गत पलटा तथा बाँट इन शब्दों की परिभाषा व्यक्त करना।
- ताल-लिपि के चिन्हों को पहचानना।
- दादरा तथा कहरवा तालों की जानकारी।
- पाँच वर्तमान कथक गुरूओं के नाम।
- अभिनव दर्पण के अनुसार निम्नलिखित असंयुक्त हस्त मुद्रायें तथा उनका प्रयोग। (1) पताका, (2) त्रिपताका,(3) अर्धपताका,(4) कर्तरिमुख, (5) मयूर, (6) अर्धचंद्र,(7) अराल, (8) शुकतुण्ड,(9) मुष्टि, और (10) शिखर।
क्रियात्मक
तीनताल:- रंगमंच प्रमाण1, ठाट2, सादा आमद 1, तोड़े6, चक्करदार तोड़े2, परन2.
गतनिकास
- सीधी गत, मटकी गत, बाँसुरी गत।
- ततकार की बराबर, दुगुन, चौगुन, तिहाई सहित।
- हाथ से ताल लगाते हुये सभी तोड़ो का अभ्यास।
- तीनताल के ठेकों को ताल सहित ठाह, दुगुन, चौगुन में पढ़ना।
- तीनताल में चार ततकार के बाँट। कहरवा या दादरा ताल में एक अभिनय गीत जिसके बोल मुखाग्र हो।
कथक
परीक्षा के अंक
पूर्णाक:125
न्यूनतम:44
शास्त्र:50
न्यूनतम:18
क्रियात्मक:75
न्यूनतम:26
शास्त्र
- कथक नृत्य का संक्षिप्त इतिहास(10 से 15 वाक्यों में) ।
- आमद, तोडा, टुकड़ा, ततकार, परन, चक्कदार, कवित्त, तिहाई, अंग, प्रत्यंग, उपांग,गत भाव, हस्त मुद्रा, आदि की परिभाषा उदाहरण सहित।
- (अ) लोकनृत्य की परिभाषा तथा पाँच प्रादेशिक लोकनृत्य के नाम जानना। (ब) सात नृत्य शैलियों के नाम उनके प्रांत सहित।
- असंयुक्त हस्तमुद्रांये:- प्रयोग:- ( अभिनय दर्पण से)। 1.कपित्थ,2.कटकामुख,3.सूचि,4.चंद्रकला,5. पद्मकोश,6.सर्पशीर्ष,7.मृगशीर्ष,8.सिंहमुख,9.कांगुल,10. अलपद्म,11.चतुर,भ्रमर,17. हंसास्य, 14.हंसपक्ष, 15. संदेश,16. मुकुल, 17. ताम्रचूड़, 18. त्रिशूल।
- किसी प्रसिद्ध कथक कलाकार की जीवनी (10 वाक्यों में)।
- वर्तमान पाँच तबला वादकों के नाम जो कथक नृत्य की संगत करते हो।
- (क) लिपिबद्ध करना– तीनताल में 1 तिहाई, 1 साधारण आमद (ताथई, ततथई), 1 परन जुड़ी आमद, 1 तोड़ा, 1 परन, 1 कवित्त।
(ख) झपताल में ठेके की ठाह (बराबर), दुगुन, 1 तिहाई, 1 तोड़ा, 1, सादा आमद, 1परन।
(ग) दादरा तथा कहरवा तालों के ठेके को ताल चिन्ह सहित लिखना।
क्रियात्मक
तीनताल:- 1.ठाट, 2. परन जुड़ी आमद,1. रंगमंच प्रमाण, 4. तोड़े (कम से कम तीन आवृत्ति), 2. परन, 2. चक्कदार परन,1 कवित्त, 1 चक्कदार तिहाई।
त्रिताल में आधी, बराबर,दुगुन, चौगुन, अठगुन तिहाई सहित, त्रिताल में बाँट तिहाई सहित।
- गत निकास– मोर मुकुट, घूघँट, बाँसुरी।
- गतभाव– राधा का पानी भरने जाना, कृष्ण का कंकर से मटकी फोड़ना, राधा का रूष्ट होना, कृष्ण का हसना आदि।
- गतभाव में दिखाई गयीं हस्तमुद्राओं के नाम।
झपताल:- 1. ठाट,1. आमद,1.तिहाई,2. तोड़े, 1. चक्कदार तोड़ा, 1परन। ततकार बराबर दुगुन, तिहाई सहित।
सभी बोलो को हाथ से ताली देकर पढ़ना आवश्यक है।
कथक
परीक्षा के अंक
पूर्णाक:400,
शास्त्र:150
क्रियात्मक:250( क्रिया:200+ मंच प्रदर्शन50)
शास्त्र प्रथम
प्रश्न-पत्र
- नाट्य की उत्पत्ति(भरतानुसार), नाट्य का प्रयोग तथा नाट्य का प्रयोजन।
- नवरसों की परिभाषा।
- नायक के चार भेंद-धीरोद्धत, धीरललित, धीरोदात्त, धीरप्रशांत।
- चार प्रकार की नायिका और उनकी परिभाषा, अभिसारिका, खण्डिता, विप्रलब्धा तथा प्रोषितपतिका।
- दशावतार में से मत्स्य, वराह, कूर्म तथा नरसिंह अवतार की कथा तथा उनकी मुद्राएं।
- ताल के दस प्राणों की व्याख्या।
- भरतनाट्यम, मणिपुरी तथा कथकली नृत्य की जानकारी। इनकी वेशभूषा तथा वाद्यो का ज्ञान।
- तीनताल, झपताल, धमार में आमद, बेदम तिहाई, फरमाइशी परन तथा चक्कदार परन, तिपल्ली तथा कवित्त को लिपिबद्ध करना।
- (अ) गुरु शिष्य परम्परा का महत्व। (ब) शिष्य के गुण तथा गुरु के प्रति उसके कर्तव्य।
द्वितीय प्रश्न–पत्र
- रस की निष्पत्ति, स्थाई भाव, भाव,विभाव, अनुभाव, व्यभिचारी भाव आदि की परिभाषा।
- निम्नलिखित पारिभाषिक शब्दों का ज्ञान- तिपल्ली, कवित्त, फरमाइशी परने, कमाली परन, बेदम तिहाई, त्रिभंग, सुढंग, लाग- डाँट, अनुलोम, प्रतिलोम, भ्रमरी, न्यास- विन्यास।
- कथक नृत्य में प्रयुक्त होने वाले निम्नलिखित गीत प्रकारों की व्याख्या: अष्टपदी, ध्रुपद, ठुमरी, चतुरंग, त्रिवट, तराना, चैती, कजरी, होरी।
- कथक नृत्य में नवाब वाजिद अली शाह तथा रायगढ़ के महाराज चक्रधर सिंह का योगदान।
- रासताल13, धमार14, गजझम्पा15, पंचम सवारी 15 में आमद, तिहाई, तोड़ा, चक्कदार परन तथा कवित्त आदि को लिपिबद्ध करना।
- जीवनियाँ:- नटराज गोपीकृष्ण, कथक साम्राज्ञी सितारा देवी, पंडित दुर्गालाल व गुरु कुन्दनलाल गंगानी।
- निबन्ध ज्ञान: (1) राम तथा कथक, (2) ठुमरी का कथक नृत्य सें सम्बन्ध।
- नर्तक/नर्तकी के गुण और दोष।
क्रियात्मक
- सरस्वती वंदना।
- तीनताल के अतिरिक्त झपताल में विशेष तैयारी।
- गजझम्पा या छोटी सवारी (पंचम सवारी) तथा रास और धमार में ठेके की ठाह,दुगुन, ठाठ, आमद, दो तोड़े, एक परन तथा एक कवित्त का प्रदर्शन।
- गतनिकास; आंचल, नाव , घूघँट के प्रकार। गतभाव: पिछले वर्षों के सभी गतभावों का प्रदर्शन तथा द्रौपदी चीरहरण।
- ठुमरी भाव( शब्द, राग, ताल की जानकारी आवश्यक)।
- एक तराना या त्रिवट किसी ताल में।
- हाथ से ताली लगाकर सभी बोलों की पढन्त।
- अभिसारिका, खण्डिता, विप्रलब्धा तथा प्रोषितपतिका नायिका पर गतभाव या इनसे संबंधित पद या ठुमरी पर भाव नृत्य।
- तीनताल या झपताल की ततकार में लड़ी या चलन।
- अभिनय दर्पण का श्लोक “आंगिक भुवन यस्य”।
- पिछले संत कवियों को छोड़कर अन्य किन्हीं दो संत कवियों के कविता या भजन पर भाव दिखाना तथा दोनों संत कवियों का परिचय देना।
मंच प्रदर्शन-
- स्वतंत्र रूप से विधिवत मंच प्रदर्शन अनिवार्य ( 20 से 30 मिनट तक)।
कथक
परीक्षा के अंक
पूर्णाक:400
शास्त्र: 150
न्यूनतम :52
क्रियात्मक:250(क्रिया200+ मंच प्रदर्शन:50)
शास्त्र प्रथम
प्रश्न-पत्र:-
- प्राचीन नृत्य संबंधी घटनाओं की जानकारी।
- मध्य युगीन ग्रन्थों की जानकारी।
- नवरसों का पूर्ण ज्ञान।
- नायिका भेद का विस्तृत ज्ञान।
- धर्म भेंद से नायिका, स्वकीया, परकीया, सामान्य।
- आयु विचार से नायिका, मुग्धा, मध्या, प्रौढ़ा।
- प्रकृति अनुसार नायिका उत्तमा, मध्यमा, अधमा।
- जाति भेंद से नायिका पदमणी, चित्रणी, शंखिनी और हस्तिनी।
- परिस्थिति अनुसार अष्ट नायिकाओं में से कलहान्तरिता, वासक सज्जा, विरहोत्कंठिता, स्वाधीन पतिका।
- ओडिसी, कुच्चिपुडी तथा मोहिनी अट्टम नृत्य की व्याख्या तथा वाद्यो व वस्त्रों की जानकारी।
- लय और ताल का उदगम तथा कथक नृत्य में महत्व।
- नाट्यशास्त्र तथा अभिनय दर्पण के अनुसार संयुक्त और असंयुक्त मुद्राओं का तौलनिक अभ्यास।
- छोटी सवारी (15), शिखर (17) में आमद, तिहाई, तोड़ा, परन आदि को लिपिबद्ध करना।
- रामायण, महाभारत, भागवत पुराण,तथा गीत गोविंद की संक्षेप में जानकारी।
द्वितीय प्रश्न-पत्र
अंक:75, न्यूनतम:26
- निम्नलिखित पात्रों की मुद्राएं (अभिनव दर्पणानुसार)। ब्रह्मा, विष्णु, सरस्वती, पार्वती, लक्ष्मी, इन्द्र, अग्नि, यम, वरूण, वायु तथा दसावतार संबंधी( मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, बलराम, कृष्ण, कल्कि)
- पौराणिक साहित्य में नृत्य के संदर्भ।
- जीवनियाँ: गुरू सुन्दर प्रसाद, गुरू मोहनराव कल्याण पूरकर, महाराज कृष्ण कुमार, पं० बिरजू महाराज।
- नृत्य में लोकधर्मी, नाट्यधर्मी की परिभाषा तथा प्रयोग।
- विदेशों में भारतीय नृत्यकला की लोकप्रियता।
- आधुनिक काल के नृत्य में विकसित होने वाले नये तकनीक तथा उनका स्वरूप(ध्वनि संयोजन, प्रकाश सज्जा, नेपथ्य, सायक्लोरामा,स्लाइड्स आदि)।
- कथक नृत्य में कवित्त तथा ठुमरी का स्थान।
- गायन, वादन, चित्रकला, मूर्तिकला तथा साहित्य का नृत्य से सम्बन्ध।
- मत्त ताल (18) व रास ताल (13) में आमद, तोड़ा, परन, चक्कदार तोड़ा, फरमाइशी परन, परमेलू आदि।
क्रियात्मक
- विष्णु वंदना(राग, ताल, तथा शब्दों की जानकारी)।
- छोटी सवारी (15), शिखर (17), मत्तताल (18), रास ताल (13) में विशेष तैयारी।
- तीनताल, झपताल, रूपक की सादे ठेके पर नाँचना।
- छोटी- छोटी कथाओं पर नृत्य निर्मित करना।
- ततकार में बाँट, लडी, चलन का विस्तार आदि का प्रदर्शन।
- गतभाव में दक्षता, कांचन मृग ( सीताहरण तक) और कंसवध (कथा कहकर अभिनय अनिवार्य)।
- बैठकर ठुमरी या पद की पंक्ति पर अनेकों प्रकार से संचारी भाव का विस्तार करना।
- सभी तालों की रचनाओं को ताल देकर पढना।
- त्रिवट, तराना, चतुरंग, अष्टपदी, स्तुति आदि में से किन्हीं दो का प्रदर्शन( राग, ताल, शब्द- परिचय)।
- नवरसों को बैठकर केवल चेहरे द्वारा व्यक्त करने की क्षमता।
- दशावतारों संबंधी किसी रचना पर प्रदर्शन(रचनाकार, राग, ताल आदि का ज्ञान)।
- तीनताल में लय के साथ भृकुटी, ग्रीवा आदि का संचालन।
- तीनताल का नगमा(लहरा) गाने या बजाने की क्षमता।
- परीक्षक द्वारा दिये गए प्रसंग को तुरन्त प्रस्तुत करना।
- अष्ट नायिकाओं पर भाव प्रस्तुति।
मंच प्रदर्शन-
स्वतंत्र रूप से विधिवत मंच प्रदर्शन अनिवार्य (20 से 30 मिनट तक)।
कथक
परीक्षा के अंक
पूर्णाक:200
शास्त्र :75
क्रियात्मक:125
शास्त्र
- प्रारंभिक से प्रवेशिका तक के सभी शब्दों की जानकारी।
- नर्तन के भेंद- नृत्य, नाट्य, नृत्त की परिभाषा।
- लास्य तथा ताण्डव की केवल परिभाषा।
- अभिनय दर्पणानुसार ग्रीवा भेंद (4 प्रकार)।
- अभिनव दर्पणानुसार नौ प्रकार के शिरोभेद।
- लोकनृत्य तथा आधुनिक नृत्य की परिभाषा।
- जीवनियाँ- पं० कालिका प्रसाद, पं० बिन्दादीन महाराज, पं० हरिहर प्रसाद, पं० हनुमान प्रसाद।
- जयपुर तथा लखनऊ घराने की विशेषता।
- संयुक्त हस्तमुद्रांये(अभिनय दर्पणानुसार)। परिभाषा और प्रयोग- अंजली, 2.कपोत, 3. कंकट, 4. स्वास्तिक,5. डोला, 6.पुष्टपुट, 7. उत्संग, 8. शिवलिंग,9. कटकावर्धन,10. कर्तरी स्वस्तिक, 11. शकट, 12. शंख।
- तीनताल, झपताल, एकताल के पाठ्यक्रम की रचनाओं को लिपिबद्ध करना।
- गतभाव के प्रसंगों का वर्णन लिखना।
- संत कवि सूरदास तथा मीरा का परिचय।
क्रियात्मक
तीनताल में विशेष योग्यता:- गुरु वंदना, तीन ठाट ( तीन अलग Poses), दो आमद (1 सादा, 1 परन जुड़ी), तीन चक्कदार तोड़े जो 4 आवृत्ति से कम के ना हो, तीन परन (1 मिश्र जाति परन आवश्यक), तीन चक्कदार परन, दो कवित्त, तीन गिणती की तिहाई, ततकार में आधी, बराबर, दुगुन, तिगुन, चौगुन, अठगुन करना तथा बाँट या चलन का विस्तार करना।
झपताल:- दो ठाट, एक परन जुड़ी आमद, एक सलामी, तीन सादे तोड़े ( तीन आवृत्ति सें अधिक आवर्तनों के हो), दो चक्कदार तोड़े, दो परन, दो चक्कदार परन, एक कवित्त, तीन तिहाई, ततकार की बराबर, दुगुन, चौगुन, तिहाई सहित।
एकताल:- एक ठाट, एक आमद, दो तोड़ें, एक चक्कदार तोड़ा, एक परन, एक चक्कदार परन, एक तिहाई, ततकार की बराबर, दुगुन, चौगुन, तिहाई सहित।
तीनताल में:- गतनिकास की विशेषता, झूमर( झूमर-घूंघरू युक्त माथे की बिन्दी जैसा मांग का गहना), कलाई, मटकी उठाने के तीन प्रकार, गतभाव: माखनचोरी, अभिनय पक्ष में- एक भजन अथवा भक्ति रस के आधार पर गीत या पद पर अभिनय (भाव प्रस्तुति)।
कथक
परीक्षा के अंक
पूर्णाक: 250
शास्त्र: 100
क्रियात्मक:150
शास्त्र
- कथक नृत्य का मंदिर परम्परा और दरबार परम्परा का संपूर्ण ज्ञान।
- (अ) बनारस घराने की विशेताए।
(ब) जयपुर, लखनऊ घराने की संपूर्ण परम्परा का ज्ञान (वंश परम्परा सहित)
- भौ संचालन तथा दृष्टि भेंद के प्रकार और उनका प्रयोग (अभिनव दर्पणानुसार)।
- लास्य तथा ताण्डव की व्याख्या और उनके प्रकार।
- तीनताल के ठेकों को आधी ½, पौनी ¾ , कुआड़ी 1, ¼ आड़ी, ½ डेढी, बिआड़ी 1, ¾ (पौने दो) लय में लिपिबद्ध करना।
- (क) अभिनय की स्पष्ट परिभाषा।
(ख) आंगिक- अभिनय, वाचिक- अभिनय, आहार्य- अभिनय, सात्विक- अभिनय की व्याख्या तथा प्रयोग।
- संयुक्त हस्त की निम्नलिखित मुद्राओं की परिभाषा तथा प्रयोग: चक्र, सम्पुट, पास, कीलक , मत्स्य, कूर्म, वराह, गरुड़, नागबन्ध, खटवा, भेरूण्ड।
- जीवनियां- पं० अच्छन महाराज, पं० शम्भु महाराज, पं० लच्छू महाराज, पं० नारायण प्रसाद, पं० जयलाल।
- तीनताल, रूपक, तथा एकताल के सभी बोलो की लिपिबद्ध क्रिया।
- . कथक नृत्य के अध्ययन की, शारिरिक, मानसिक और बोद्धिक उपयोगिता।
क्रियात्मक
श्रीशिव वंदना अथवा कृष्ण वंदना:-
- तीनताल में विशेषताओं सहित- एक उठान, एक ठाट, एक आमद, एक परमेलू, एक नटवरी तोड़ा, एक फरमाइशी चक्रदार( पहली धा पहली, दूसरी धा दूसरी,तथा तीसरी धा तीसरी सम पर), एक गणेश परन, एक ततकार की लड़ी। (तकिट तकिट धिन)
- रूपक में – एक ठाठ, एक सादा आमद, चार सादे तोड़े, दो चक्रदार तोड़े, दो परन, दो चक्रदार परन, दो तिहाई एक कवित्त। ततकार- बराबर, दुगुन, चौगुन, तिहाई सहित।
- एकताल में- दो ठाट, एक परन जुड़ी आमद, चार तोड़े, दो चक्कदार तोड़े, दो परन, दो चक्रदार परन, एक कवित्त और तीन तिहाई। ततकार- बराबर, दुगुन, तिगुन, चौगुन, तिहाई सहित।
- सीखें हुये सभी बोलों की ताल देकर पढन्त करना।
- गतनिकास में विशेषता: रूखसार, छेड़छाड़, आंचल आदि।
- गतभाव में कालिया दमन।
- ‘होरी’ पद पर भाव प्रस्तुति।